सिवनीमालवा (चन्द्र शेखर बाथव)। इन दिनों क्षेत्र में एक कथित कंपनी के कुछ कथित कर्मचारी ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में भ्रमण कर स्थानीय लोगों को बहला-फुसलाकर नकली सामान बेच रहे हैं। यह सिलसिला लंबे समय से जारी है, लेकिन हाल के दिनों में इसकी गतिविधियों में तेजी आई है, जिससे स्थानीय व्यापारी वर्ग को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके साथ ही सरकारी करों की भी चोरी की जा रही है, जिससे शासन को आर्थिक हानि हो रही है।
*आदिवासी क्षेत्रों पर रहती है इनकी नजर*
मामले की पड़ताल में यह सामने आया है कि यह कथित कंपनी मुख्यतः आदिवासी बहुल क्षेत्रों को अपना निशाना बना रही है। वहां के भोले-भाले लोगों को 'इनामी कूपन', 'सस्ते दामों में बेहतर सामान', 'फ्री गिफ्ट' जैसे लालच देकर नकली व निम्न गुणवत्ता वाले सामान बेचे जा रहे हैं। सामान के साथ नकली बिल भी दिए जाते हैं, जिन पर न तो कंपनी का पंजीकृत नाम होता है, न ही पता, और न ही वैध GST नंबर।स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, इन कंपनियों के कर्मचारी स्वयं को "सर्वेश कंपनी" या ऐसे ही दिखने वाले अन्य नामों से पहचान देते हैं। जब कोई उपभोक्ता सवाल करता है, तो उसे कहा जाता है कि “हमारी कंपनी का दफ्तर इंदौर, भोपाल या नागपुर में है,” लेकिन कोई स्थायी कार्यालय या संपर्क नहीं दिया जाता।स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया स्थानीय बाजार के लिए घातक सिद्ध हो रही है। जो सामान व्यापारी भारी टैक्स देकर बेचते हैं, वही नकली और सस्ते दामों पर यह फर्जी कंपनी ग्रामीणों को बेच देती है, जिससे उनकी सेल घट गई है और ग्राहकों में भ्रम की स्थिति बन रही है।व्यापारियों का आरोप है कि इन फर्जी कंपनियों की वजह से न केवल उनका धंधा प्रभावित हो रहा है, बल्कि शासन को टैक्स भी नहीं मिल पा रहा है।
*गाड़ियों में आते हैं चार-पांच लोग, संदिग्ध गतिविधियां*
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, ये लोग बड़ी महंगी गाड़ियों से आते हैं, जिनमें चार से पांच लोग सवार होते हैं। ये लोग गांव में रुककर प्रचार करते हैं और तात्कालिक बिक्री करते हैं।
*इनामी कूपन और फर्जी स्कीम का जाल*
फर्जी कंपनी के कर्मचारी ग्रामीणों को इनामी कूपन देकर लुभाते हैं। कहा जाता है कि अगर वे सामान खरीदते हैं, तो उन्हें 'लकी ड्रा' में फ्रिज, मोबाइल, एलईडी टीवी , मोटर साइकिल जैसे इनाम मिलेंगे। लेकिन इनाम कभी किसी को नहीं मिलता।यह सीधे तौर पर उपभोक्ता संरक्षण कानून और आपराधिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
*पुलिस व प्रशासन बेखबर या अनदेखी?*
सबसे गंभीर सवाल यह है कि क्या स्थानीय प्रशासन और पुलिस को इस गतिविधि की जानकारी नहीं है? या जानबूझकर इस पर चुप्पी साधी जा रही है?कुछ ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने इसकी जानकारी सरपंच या सचिव को दी थी, लेकिन अब तक किसी ने कार्रवाई नहीं की। कई मामलों में ग्रामीणों को खरीदे गए उत्पाद खराब निकले, लेकिन वापस करने या शिकायत करने का कोई जरिया नहीं दिया गया।
*स्थानीय प्रतिनिधियों और प्रशासन से मांग*
व्यापारियों और सामाजिक संगठनों ने पुलिस प्रशासन एवं जिला प्रशासन से मांग की है कि इस तरह की कंपनियों की जांच की जाए।यदि कंपनी वैध है तो उसका रजिस्ट्रेशन नंबर, GST डिटेल, अधिकृत वितरण एजेंट का प्रमाण दिखाया जाए। अन्यथा इस तरह की कंपनियों पर IPC की धाराओं के तहत कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि आगे से कोई भोले-भाले आदिवासियों को धोखा न दे सके।सिवनीमालवा का यह मामला केवल एक तहसील तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत में पनपते एक गंभीर आर्थिक अपराध का हिस्सा है। ग्रामीणों की अशिक्षा, जागरूकता की कमी और सरकारी तंत्र की सुस्ती का फायदा उठाकर ऐसी फर्जी कंपनियां खुलेआम ठगी कर रही हैं।यदि समय रहते प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो यह न सिर्फ स्थानीय व्यापार को चौपट करेगा, बल्कि आदिवासी समाज में भरोसे की कमी और आर्थिक शोषण को और अधिक गहरा कर देगा।