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*🌈💫स्वर्णकार समाज के वंशज आराध्य देव जी की जयंती**🌈💫पंचवटी परिसर में पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ मनाई गई*

नर्मदापुरम। शरद पूर्णिमा के दिन शनिवार को मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आराध्य आदि पुरुष अजमीढ़ देव जी महाराज की जयंती प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी पंचवटी परिसर में मनोज सोनी के निवास पर मनाई गई। जिसमें उनके परिजनों सहित सामाजिक बंधु भी उपस्थित रहे।इस अवसर पर मनोज सोनी ने स्वर्णकार समाज के वंशज आराध्य देव श्री अजमीढ़ जी महाराज की जयंती पर उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुए। महाराज श्री के इतिहास पर विस्तार से जानकारी दी। गौरतलब है कि राजस्थान में प्रसिद्ध अजमेर, (जिसका प्राचीन नाम अज्मेरू था) शहर बसाकर मेवाड़ की नींव रखने वाले महाराज अजमीढ़ जी, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आराध्य आदि पुरुष माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाराज अजमीढ़, ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न अत्री की 28वीं पीढ़ी में त्रेता युग में जन्मे थे। वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के समकालीन ही नहीं बल्कि उनके परम मित्र भी थे। उन्होंने महाभारत काल में वर्ण‍ित हस्तिनापुर नगर को बसाया था। अजमीढ़ जी जेष्ठ पुत्र होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उतराधिकारी हुए, और बाद में अजमीढ़जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एवं हस्तिनापुर दोनों राज्यों के भी सम्राट हुए। प्रारंभ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई। इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक ई.पू. 2000 से ई.पू. 2200 वर्ष में उनका राज्यकाल रहा।महाराजा हस्ती के जीवन काल की प्रमुख घटना यही मानी जाती है की उन्होंने हस्तिनापुर का निर्माण करवाया। प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल, बल्कि देश का प्रमुख राजनैतिक एवं सामाजिक केंद्र रहा। कालांतर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिए प्रसिध्य कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि महाराजा अजमीढ़ देव जी धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे, और उन्हें खिलौने तथा आभूषण बनाने का बेहद शौक था। अपने इसी शौक के चलते वे अनेक प्रकार के खिलौने, बर्तन और आभूषण बनाकर उन्हें अपने प्रियजनों को भेंट किया करते थे। उनके इसी शौक को उनके वंशजों ने आगे बढ़ाकर व्यवसाय के रूप में अपना लिया। तभी से वे स्वर्णकार के रूप में जाने गए और आज तक आभूषण बनाने का यह व्यवसाय उनके वंशजों द्वारा जारी है। अजमीढ़ देव जी एक महान क्षत्रिय पराक्रमी राजा के रूम में मान्य थे। शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ला १५) के दिन, मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज द्वारा आदि पुरुष अजमीढ़ जी की जयंती मनाने की परंपरा है। इसलिए  आज शरद पूर्णिमा के दिन अजमीढ़ देव जी की जयंती पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ मनाई गई।

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